स्वप्न मेरे: प्रेम के रिश्ते ...

शनिवार, 21 सितंबर 2024

प्रेम के रिश्ते ...

सुलगते ख्वाब
कुनमुनाती धूप में लहराता आँचल
तल की गहराइयों में हिलोरें लेती प्रेम की सरगम
सतरंगी मौसम के साथ साँसों में घुलती मोंगरे की गंध

क्या यही है प्रेम के रिश्ते की पहचान
या इनसे भी कुछ इतर
दूर कहीं खिल-खिलाता जंगली गुलाब ...
#जंगली_गुलाब

7 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम का सर्वव्यापी स्वरूप प्रकृति के कण कण में व्याप्त हैं इसी भाव को रूपायित करता अति सुन्दर सृजन ।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 23 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  3. हर कहीं वही वह है, उसके बिना न कोई शै है

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  4. प्रेम को किसी दायरे में नहीं समेट सकता कोई भी,,,
    बहुत अच्छी प्रस्तुति,,

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  5. जिस रंग रूप में देखें प्रेम उसी में नजर आता है ।
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!!

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