स्वप्न मेरे: रँग ...

सोमवार, 30 सितंबर 2024

रँग ...

इंद्र-धनुष के सात रँगों में रँग नहीं होते
रँग सूरज की किरणों में भी नहीं होते
और आकाश के नीलेपन में तो बिलकुल भी नहीं ...

दरअसल रँग होते हैं तो देखने वाले की आँख में
जो जागते हैं प्रेम के एहसास से
जंगली गुलाब की चटख पंखुड़ियों में

तुम भी तो ऐसी ही सतरंगी कायनात हो ...
#जंगली_गुलाब

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत एहसास पिरोया है आपने सर।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. जगजीत सिंह जी और लता दीदी की एल्बम से एक शेर याद आ गया नासवा जी।

    मैंने तुझसे चाँद सितारे कब माँगे
    रोशन दिल बेदाग नजर दे या अल्लाह

    नज़र की ही तो सारी बात है ।

    खूबसूरत इज़हार ।

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  3. दरअसल रँग होते हैं तो देखने वाले की आँख में
    वाह!!!
    क्या बात...
    तभी तो कहते हैं जैसी होगी दृष्टि वैसी होगी सृष्टि
    लाजवाब सृजन

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  4. रंगों की बहुत सुन्दर परिभाषा उकेरी है आपने । अति सुन्दर ।

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