स्वप्न मेरे: बीतना ... समय का या हमारा ...

शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

बीतना ... समय का या हमारा ...

लोग अक्सर कहते हैं समय बीत जाता है
यादों के अनगिनत लम्हों पर
धूल की परत जमती रहती है
समय की धीमी चाल
शरीर पे लगा हर घाव धीरे-धीरे भर देती है

क्या सचमुच ऐसा होता है ...

समय बीतता है ... या बीतते हैं हम
और यादें ... उनका क्या
धार-दार होती रहती हैं समय के साथ

तुम भी बूढी नहीं हुईं
ताज़ा हो यादों में जंगली गुलाब के जैसे ...
#जंगली_गुलाब

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