स्वप्न मेरे: बीतना ... समय का या हमारा ...

शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

बीतना ... समय का या हमारा ...

लोग अक्सर कहते हैं समय बीत जाता है
यादों के अनगिनत लम्हों पर
धूल की परत जमती रहती है
समय की धीमी चाल
शरीर पे लगा हर घाव धीरे-धीरे भर देती है

क्या सचमुच ऐसा होता है ...

समय बीतता है ... या बीतते हैं हम
और यादें ... उनका क्या
धार-दार होती रहती हैं समय के साथ

तुम भी बूढी नहीं हुईं
ताज़ा हो यादों में जंगली गुलाब के जैसे ...
#जंगली_गुलाब

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 14 अक्बटूर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. वाह! दिगंबर जी ,बहुत खूबसूरत सृजन!

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  3. ये वक्त भी
    बेवफाई कर जाता है..
    सुना था हर दर्द का मरहम
    वक्त होता है..
    पर बात जब उसकी यादों की होती
    मानो वक्त ठहर सा जाता है....

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  4. बहुत सुन्दर लिखा है दिगंबर जी, सच में यादें धारदार होती रहती हैं वक्त के साथ।

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  5. धारदार यादों से घाव लगने का खतरा भी तो बना ही रहता है

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  6. समय बीतता है ... या बीतते हैं हम
    और यादें ... उनका क्या
    धार-दार होती रहती हैं समय के साथ…
    सत्य कथन ! हमेशा की तरह बहुत उम्दा भावाभिव्यक्ति ।

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