उजाले के पर्व दीपावली की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ...
प्रभु राम का आगमन सभी को शुभ हो ...
तभी ये दीप घर-घर में जले हैं.
सजग सीमाओं पर प्रहरी खड़े हैं.
जले इस बार दीपक उनकी खातिर,
वतन के वास्ते जो मर मिटे हैं.
झुकी पलकें, दुपट्टा आसमानी,
यहाँ सब आज सतरंगी हुवे हैं.
अमावस की हथेली से फिसल कर,
उजालों के दरीचे खुल रहे हैं.
पटाखों से प्रदूषण हो रहा है,
दीवाली पर ही क्यों जुमले बने हैं.
सुबह उठ कर छुए हैं पाँव माँ के,
हमारे लक्ष्मी पूजन हो चुके हैं.
सफाई में मिली इस बार दौलत,
तेरी खुशबू से महके ख़त मिले हैं.
(तरही ग़ज़ल)
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द शुक्रवार 01 नवंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंअमावस की हथेली से फिसल कर,
जवाब देंहटाएंउजालों के दरीचे खुल रहे हैं.
वाह!! बेहतरीन शायरी, शुभ दीपावली
दीप पर्व शुभ हो | सुन्दर |
जवाब देंहटाएंसुबह उठ कर छुए हैं पाँव माँ के,
जवाब देंहटाएंहमारे लक्ष्मी पूजन हो चुके हैं.
वाह !! बहुत खूब !
दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह वाह👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब...
हार्दिक शुभकामनाएं।
बेहतरीन
जवाब देंहटाएं