स्वप्न मेरे: टूटी हो छत जो घर की तो आराम ना चले ...

शनिवार, 4 जनवरी 2025

टूटी हो छत जो घर की तो आराम ना चले ...

खुल कर बहस तो ठीक है इल्ज़ाम ना चले.
जब तक ये फैसला हो कोई नाम ना चले.

कोशिश करो के काम में सीधी हों उंगलियाँ,
टेढ़ी करो जरूर जहाँ काम ना चले.

कोई तो देश का भी महकमा हुज़ूर हो,
हो काम सिलसिले से मगर दाम ना चले.

भाषा बदल रही है ये तस्लीम है मगर,
माँ बहन की गाली तो सरे आम ना चले.

तुम शाम के ही वक़्त जो आती हो इसलिए,
आए कभी न रात तो ये शाम ना चले.

बारिश के मौसमों से कभी खेलते नहीं,
टूटी हो छत जो घर की तो आराम ना चले.

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