स्वप्न मेरे: साहिल से कुछ ही दूर जो फिसल गया ...

शनिवार, 18 जनवरी 2025

साहिल से कुछ ही दूर जो फिसल गया ...

जो धूप में रहा वही तो जल गया.
पैदल तो छाँव-छाँव बस निकल गया.

क़िस्मत वो अपने आप ही बदल गया,
गिरने के बावज़ूद जो संभल गया.

बस उतनी ज़िन्दगी से उम्र कम हुई,
जो वक़्त तू-तड़ाक में निकल गया.

क़ातिल मेरे हिसाब से तो वो भी है,
सपनों को दूसरे के जो कुचल गया.

क्या सामने वो आ सकेगा धूप के,
हलकी सी रोशनी में जो पिघल गया.

कुछ सर ही फूटने को थे उतावले,
पत्थर का क्या क़सूर जो मचल गया.

क्यों हाल उस गरीब का हो पूछते,
साहिल से कुछ ही दूर जो फिसल गया.
#स्वप्नमेरे

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