स्वप्न मेरे: परिन्दे ले ही जाते हैं उड़ा कर ...

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

परिन्दे ले ही जाते हैं उड़ा कर ...

तस्सवुर खूबसूरत सा छुड़ा कर.
हक़ीकत ले ही आती है उठा कर.

इबादत पर सियासत हो जहाँ पे,
निकल जाओ वहाँ से सर झुका कर. .

उन्हें भी प्यार हमसे हो गया है,
कभी तो बोल दें वो मुस्कुरा कर.

सभी क़ानून इनकी जेब में हैं,
बरी हो जाएँगे सब कुछ चुरा कर.

मिटेंगे दाग़ लेकिन याद रखना,
कमीजें फट भी जाती हैं धुला कर.

न उनको भूल पाए हम कभी भी,
चले आये थे यूँ सब कुछ भुला कर.

शिकारी जाल जितने भी बिछा लें,
परिन्दे ले ही जाते हैं उड़ा कर.
#स्वप्नमेरे

5 टिप्‍पणियां:

  1. लाज़वाब अश'आर।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. मिटेंगे दाग़ लेकिन याद रखना,
    कमीजें फट भी जाती हैं धुला कर.
    सटीक , सुंदर
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही खूबसूरत और सटीक रचना ..दिगंबर जी ।

    जवाब देंहटाएं

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