करो साबित मेरे सर पे रखे इलज़ाम सारे.
सुबूतों से मिटा कर आ गया हूँ नाम सारे.
वो हारेंगे मगर दोहराएंगे यह बात फिर फिर,
चुनावों के अभी आने तो दो परिणाम सारे.
मुझे मेरे ही बच्चों ने मेरा बचपन दिखाया.
गए मेहमान बाहर, चट हुए बादाम सारे.
किसी से कब वफादारी निभाती हैं ये लहरें,
मिटा डालेंगी गीली रेत से पैगाम सारे.
पसीने की महक से दूर तक नाता नहीं है,
मगर हैं चाहते उनको मिलें आराम सारे.
सलाखों की घुटन कुछ पल कभी महसूस करना,
परिंदे छोड़ दोगे पिंजरे से उस शाम सारे.
भटकता है तो मन है खोजता हर दर पे खुशियाँ,
सुकूने दिल है तो घर में सभी हैं धाम सारे.
#स्वप्न_मेरे
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 24 फरवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंVery Nice Post.....
जवाब देंहटाएंWelcome to my blog !
किसी से कब वफादारी निभाती हैं ये लहरें,
जवाब देंहटाएंमिटा डालेंगी गीली रेत से पैगाम सारे.
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ
सलाखों की घुटन कुछ पल कभी महसूस करना,
जवाब देंहटाएंपरिंदे छोड़ दोगे पिंजरे से उस शाम सारे.
वाह !!!
बहुत ही लाजवाब👌👌🙏🙏
भटकता है तो मन है खोजता हर दर पे खुशियाँ,
जवाब देंहटाएंसुकूने दिल है तो घर में सभी हैं धाम सारे.
वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल, वाक़ई, सुबूत न मिले तो कोई मुलज़िम मुजरिम नहीं होता, बिना मेहनत के यहाँ कुछ भी हासिल नहीं होता