फागुन का गीत गाइए होली का रोज़ है
पलकें ज़रा उठाइए होली का रोज़ है
ख़ुद में सिमट न जाइए होली का रोज़ है
कीचड़ नहीं ये रंग हैं ताज़ा पलाश के
यूँ तो न मुँह बनाइए होली का रोज़ है
कुछ लोग पीट-पीट के छाती कहेंगे अब
पानी न यूँ बहाइए होली का रोज़ है
बाहर खड़े हैं देर से आ आइये हज़ूर
हमको न यूँ सताइए होली का रोज़ है
भर दूँ ये माँग आपकी उल्फ़त के रंग में
हाँ है तो मुस्कुराइए होली का रोज़ है
कुर्ता सफ़ेद डाल के ये रिस्क ले लिया
बच बच के आप जाइए होली का रोज़ है
वैसे भी मुझपे इश्क़ का रहता है अब नशा
ये भांग मत पिलाइए होली का रोज़ है
तरही ग़ज़ल
बेहद उम्दा ग़ज़ल ! ! होली की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 15 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
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